अश्कों के मोती
एक शेर के साथ ये मेरा नहीं है लेकिन
खत लिखते रहें फाड़ते रहे पर भेजते तक नहीं
कोई भी नाम देदो इस दीवानगी को तुम जरा
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यादें तेरी अश्क़ों के जाम लेती तो दिल रो गया
गले मिलकर तेरा पैगाम देती तो दिल खो गया
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बीते हुए लम्हें और वो गमे+तन्हाईयों का सफ़र
लगता कोई मुसाफिर आशिकी के बीज़ बो गया
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माना इश्क इंतिहा लेता एक आग का दरिया है
पर इस तूफां से जो टकराया वो इसी का हो गया
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बीते हुए लम्हें बनाते उसकी कई तस्वीरे ख्यालो में
खोया रहूँ ख्यालो में ये सोचकर सदा को सो गया
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फ़ना होने की ख्वाईश अशोक की भी अब ख़ुदा
देख तुझे मंदिर मस्जिद में अश्क़ों के मोती पो गया
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अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से