अश़्कयूंबेबसी में
अश्क यूँ बेबसी में बहाते रहे।
तुम हमें हम तुम्हें याद आते रहे।
ख़्वाब हमने सजाये हसीं थे मगर।
गर्द में हम गमों की नहाते रहे ।
शिकवा किससे करें होगा हासिल भी क्या।
होंठ सीकर सदा गुनगुनाते रहे ।
दावा करते रहे हमसे हमदर्दी का ।
पर सितम पर सितम तुम ढहाते रहे।
रोशनी बुझ गई रास्ते खो गये ।
ख़्वाब तेरे मगर हम सजाते रहे।
******राजश्री******