अशकों से गीत बनाता हूँ
अशकों से गीत बनाता हूँ
दुश्मन को मीत बनाता हूँ
मैं शिक्षक हूँ मैं सेवक हूँ
हर दिल में प्रीत जगाता हूँ
कच्ची मिट्टी में प्राण फूँक
मैं ज्ञान के दीप सजाता हूँ
कभी जीजाबाई बन कर मैं
कोई वीर शिवा पनपाता हूँ
कभी कौटिल्य सा चंद्रगुप्त
को राज काज सिखलाता हूँ
तीर नहीं तलवार नहीं बस
कलम है मेरे हाथों में
कोरी दबी लकीरों में
क़िस्मत के रंग खिलाता हूँ
एक एक अक्षर करते करते
कई भाषाएँ सिखला देता
एक एक पुर्ज़ा करते करते
कई इंजीनियर बना देता
ये धुँधले तारे भी एक दिन
एक एक सूरज बन कर चमके
दुनिया इनका लोहा माने
इस ख़ातिर अलख जलाता हूँ
कच्ची मिट्टी से बच्चों को
जैसा मिल जाता है शिक्षक
वैसे ही वे भी बनते हैं
अच्छे शिक्षक अच्छे समाज का
बहुत पुराना नाता है
मैं नींव डालने को अच्छी
एक एक कर ईंट लगता हूँ
मैं ज्ञान के दीप जलाता हूँ
अंकुर से वृक्ष उगाता हूँ
कंचन