# अव्यक्त ….
# अव्यक्त …
हुआ बहुत ही धोखा ,
इसमें ऐसा ही होता …!
कहीं-कहीं रात चांदनी ,
कहीं अंधेरा होता …!
प्रेम ग्रंथ के पन्ने खोलूँ ,
लिख लूं अपनी जिज्ञासा …!
पंख पसारे उड़ जा पंछी ,
तू है कब से प्यासा …!
आज विकल है मन मेरा ,
कहना चाहे व्यथा …!
जीवन को कई रंग चढ़े ,
ऐसे कैसे दूं बता …!
भावनाएं हुई आहत ,
कहां मिली राहत …!
ह्रदय का सूनापन ,
नीरभ्र आकाश सा …!
ज्ञानेंद्रियों की सारी ,
क्रियाएं हुई शिथिल …!
चेहरे का भाव ,
मृत शव सा …!
वातावरण में पसरा ,
शून्य सा सन्नाटा …!
आंखें साधे ,
जंगल की निर्जनता …!
जीवन लगने लगा ,
हो गया है बोझिल …!
रुक चुका ,
हाथों का स्पंदन …!
टूट चुका अब ,
शब्दों का तारतम्य …!
आज कुछ भी ,
व्यक्त नहीं हो सका …!
व्यक्त होते हुए भी ,
सब कुछ अव्यक्त है …!
चिन्ता नेताम ” मन ”
नगर पंचायत डोंगरगांव
राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )