अविस्मरणीय
अविस्मरणीय
“अरे यार, अब ये पापाजी ने आज क्या नया नाटक कर दिया, कल ज़रा सी कहा सुनी हो गई थी,आज सुबह से घर से गायब हैं,अब सारा काम धाम छोड़कर उन्हें ढूंढते फिरो” नंदिता ने बड़बड़ाते हुए नितिन से कहा।
“कहां निकल गए यार, मम्मी से पूछो, उन्हें तो कुछ बताया होगा”नितिन ने कहा।
“मम्मी जी, बताईए आपसे कुछ कहकर गए हैं वो” नंदिता ने रोष से कहा।
“बेटा, मुझे कुछ नहीं पता, मोबाइल फोन भी घर में ही छोड़ गए हैं, मेरा दिल बहुत घबरा रहा है, उन्हें भूलने की बीमारी भी है ” नंदिता की सास सुमन जी ने चिंतित स्वर में कहा।
“मेमोरी लॉस कर जाते हैं लेकिन हमें परेशान करना नहीं भूलते, यही तो कहा था कल भी मैंने कि चुपचाप घर में क्यों नहीं बैठते, उसी बात का बतंगड़ बना कर,आज घर से गायब हो गए, बहुत परेशान हो गए हैं हम , आप लोगों से ” नंदिता दाँत भींचकर बोली।
“सब जगह फोन करके पूछ लिया, कहीं नहीं है, पुलिस में रिपोर्ट करें क्या?” नितिन बोला।
“हे ईश्वर, ये जहां भी हो, उन्हें मार्ग दिखाइए , ताकि वे सही सलामत घर आ जाएं, आ जाओ न, जल्दी से, मेरे लिए तो सोचो” सुमन जी भरी आँखों से भगवान के सामने हाथ जोड़कर बोलीं।
“चलो, अब तो पुलिस रिपोर्ट कर ही दो” नंदिता झल्लाते हुए बोली।
“ठीक है मैं पुलिस स्टेशन जाता हूं” कहकर नितिन बाहर निकला, सामने से धीमी धीमी चाल से पापाजी को आते देखते ही वो झुंझलाते हुए बोला –
“पापाजी, ये क्या हरकत की है आपने, हम लोगों को परेशान करने में क्या मिलता है आपको, मेमोरी लॉस कर जाते हो, अभी कहीं का कहीं निकल जाते तो हम कहां कहां सिर फोड़ते, कुछ याद तो रहता नहीं है आपको ”
“मैं सब कुछ भूल सकता हूं पर इनको कैसे भूल सकता हूं “पापाजी ने सुमन जी का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा,जो मुँह पर ऊंगली रखकर, उन्हें चुप रहने का इशारा कर रहीं थीं और आँखों से ईश्वर के प्रति कृतज्ञता में अविरल अश्रु धारा बह रही थी।
नम्रता सरन “सोना “
भोपाल मध्यप्रदेश