अविरल-बहो
कह दो इन जुगनुओं से
रात में ना चमका करे
ये चाँद रोशनी का
मोहताज नहीं है
दिन में निकलो कभी
धूप में साया करो ख़ुद को
पिघलते काजल सा
ज़रा ज़ाया करो ख़ुद को
देखो फिर,
हर उन्नाव में कुमुद होगा
हर कठुआ में ज्योति
चमकेगा हर धूप का चाँद भी
किसी साये को ना अवि की ज़रूरत होगी
@संदीप