अवसादों के सागर
अवसादों के सागर गहरे, खुशियों के फब्बारे कम।
नहीं देखते खुशियां अपनी , देखें केवल गम ही ग़म।।
मनुष्य बना है सुख-दुख रूपी,पीली श्यामल मिट्टी से।
नहीं देखते दुःख पराया ,देखा करते बस हम ही हम।।
जीवन है अनमोल पढ़ा जब,सब पोथी,ग्रंथ पुराणों में।
सद्कर्मों में लगा सुधारें,जब तक आखिरी सांस में दम।।
कितने ही तो हार मान कर ,खुद से खुद करते खिलवाड़।
ऐ अज्ञानी राम कृष्ण जप ,’मीरा’ जैसा रख दम खम ।।
मीरा परिहार