अवशेष
पलकों की छांव तले
नेत्र ढूँढ रहे हैं
अपने बहे हुए अश्कों के अवशेष
जो कुछ दिन पहले
महबूब की बेवफाई में बह गये थे
– सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
पलकों की छांव तले
नेत्र ढूँढ रहे हैं
अपने बहे हुए अश्कों के अवशेष
जो कुछ दिन पहले
महबूब की बेवफाई में बह गये थे
– सुखविन्द्र सिंह मनसीरत