अवरोधक
मन चाहता है देखूं
वह सैकडों वर्ष पुरानी
देशी-स्वदेशी
सलिल-अश्लील
समस्त हस्त कलाएँ
परन्तु रोक देती हैं मुझे
मादक-उन्मादक
नग्न और संभोगरत
कामलिप्त मूर्तियां।।
मैं नहीं गया कभी
घूमने-घुमाने
मन मोहक विश्वविख्यात
खजुराहो के
उन भव्य मन्दिरों में
क्यों कि-
मेरे साथ मेरा
समस्त परिवार है
माँ है बहन है बेटी है
समाज है ।।
मैं जाता अवश्य ही
मन मोहक विश्वविख्यात
खजुराहो के उन मंदिरों में-
काश जो न होती वहां
भक्तों के ध्यान की
घोतक वह मूर्तियां
मन्दिर का दर्शन
अवरोधक वह मूर्तियां
वह मूर्तियां जो आज भी प्रतीक बन खड़ी हैं
जाने कैसे जीवन का
जाने किस समाज का
वह मूर्तियाँ कि जिनसे टपकता है रात दिन
रक्त जाने कितनी ही अबलाओं की लाज का।।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”