अवधपुरी है कंचन काया
अवधपुरी है कंचन काया, इसमें रमते हैं श्रीराम।
श्वास रूप सरयू बहती है, करती अनुक्षण उन्हें प्रणाम।।
शक्ति रूप सीता की संगति, उन्हें बनाती है बलवान।
अपने में निर्भयता लाकर, गाएं सदा उन्हीं का गान।।
जिएं सदा सानंद जिन्दगी, भरते रहें हृदय में हर्ष।
सदा राम के साथ प्रेम से, करते रहें विचार विमर्श।।
हार जीत का भेद भूलकर, करते रहें सतत संग्राम।
याद न भूले कभी राम की, सारे कर्म करें निष्काम।।
भेद न कोई राम श्याम में, शक्ति सर्वदा उनके संग।
भक्तों को न हारने देती, दुनिया दृश्य देखकर दंग।।
हर आराधक को, साधक को, सीताराम दिलाते जीत।
ज्यों ज्यों मिलती जीत भक्त को, त्यों त्यों गाढ़ी होती प्रीत।।
सात्विक जीवन जिएं सर्वदा, अनासक्त रह भोगें भोग।
कर्म सभी निष्काम करें हम, सबसे बड़ा यही है योग।।
प्रभु हैं लीलाधाम, भक्त की, पूरी करते हर अभिलाष।
उनकी सुस्मृति हृदय बसाकर, जारी अपना रखें प्रयास।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी