अवतार
अवतार शब्द मात्र भ्रम के हैं
नहीं होता कोई
किसी का पर-रूप
पर-आत्मा
सबकी अपनी आत्मा है
सबका अपना रूप।
यदि सत्य है
अवतरण की धारणा
तो मैं ही हूँ
समस्त देवताओं का रूप
विष्णु शिव राम कृष्ण का पर-रूप।।
मैं ही विष्णु हूँ
पर त्याग दिया है मैंने
शेषनाग का आसन
क्यों कि-
कलयुग में बारूद भरा मिटटी का कण कण
शेषनाग के विष से भी घातक है।।
मैं ही शिव हूँ
पर त्याग दिया है मैंने
विष ग्रहण भँगपान का सेवन
क्यों कि-
कलयुग का हर मानव दिखता
विष भोगी और
भंग भोजक है।।
मैं ही राम हूँ
पर त्याग दिया है मैंने
इस जीवन में वन विचरण
क्यों कि-
कलयुग में वन के वासी
ऋषियों के पीताम्बर ओढ़े
बैठे लाखों दस्यु हैं।।
मैं ही कृष्ण हूँ
पर त्याग दिया है मैंने
गीता के उपदेश को देना
क्यों कि-
कलयुग में अब चप्पा चप्पा
भारत का कुरुक्षेत्र है
पांडव लड़ते हैं पांडवों से
होता नित्य महाभारत है।।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”