अल्फाज़ ए ताज भाग-4
1.
मुद्दतो बाद एक जानी पहचानी आवाज़ आयी कानों में।
पलट कर जो देखा तो वह नज़र आया किसी गैर की बाहों में।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
2.
तुम्हारी यादों के सहारे कब तक हम यूँ यह जिंदगीं काटेंगे।
तू तो वहां जी रहा है सुकून से हम क्या ऐसे ही मर जायेंगे।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
3.
जिंदगीं का हिसाब तुमको ना समझ आएगा।
जब वक्त निकल जायेगा तब तू बड़ा पछतायेगा।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
4.
अपनी जिंदगीं को तुम्हारे नाम कर रहा हूँ।
तुम्हारे वजूद को पाकर मैं गुमान कर रहा हूं।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
5.
अपनी जिंदगीं को तुम्हारे नाम कर रहा हूँ,
तुम्हारे वजूद को पाकर मैं गुमान कर रहा हूं।
ज्यादा डरना भी परेशानी का सबब बन जाता है,
लो हमारे रिश्ते को मैं खुल ए आम कर रहा हूं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
6.
मदद है मदद को मदद की ही तरह रहने दो।
ले लिये है काफी अहसान तुम्हारे अब रहने दो।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
7.
दो पल का साथ चाहते हो तो मत करना यह रिश्ता।
ज़िंदगी पूरी गुजारनें का ख्याल है हमारा।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
8.
वह नज़र ही क्या जिसमें अश्को की नमी ना हो।
वह मोहब्बत ही क्या जो मुकम्मल को पा गयी हो।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
9.
हमारा कत्ल जो तुम कर रहे हो तो करना शौक से,,,
हमे तो मरने के बाद पता ना चल पाएगा।
पर एक अंदाज़ा है तुझसे मोहब्बत करने के बाद,,,
जिंदगीं तुम भी सुकूँ से ना रह पायेगा।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
10.
यूँ सवालियां निशान ना लगा मेरे किरदार पर।
जा पढ़ ले जाके आज भी लिखे होंगे मेरी वफ़ा के किस्से हो चुके पुरानें खंडहर की दरों दीवार पर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
11.
तुम्हारें पास हर किसी का जवाब है।
तुमसे पूंछना कोई भी सवाल बेकार है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
12.
बड़ा गुमान है तुमको अपनी जानकारी पर,
मुब्तिला ना हो जाना कही इश्क की बीमारी पर।
धरी की धरी रह जायेगीं फिर ये गुमानियाँ,
गर मदहोश हो गए तुम कही इश्क ए खुमारी पर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
13.
एक की आबरू का मोल है दूसरे की क्यों अनमोल है,
ये तो सरासर तुम्हारा गलत कौल है।
बेताब है मर जाने को इसमे खता ना कोई शम्मा की है,
परवाना तो देखो खुद ही मदहोश है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
14.
देखो फिर से दुकानें खुल गयी है।
पर फूल बेचने वाली वो छोटी बच्ची ना दिखी है।
अब क्या सुनाए दास्तान गरीब की।
उसकी इज्ज़त यहां के वहशियों से ना बची है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
15.
अपनी बर्बादी का जिम्मा मुझ पर है।
यूं हर जिंदगी में होते ख़ुशी गम हज़ार हैं।।
हर हिसाबे गम है पर खुशी का नहीं।
खिजांए भी तो होती मौसम की बयार हैं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
16.
बेटे को टिकट ना मिलने पर इस बार फिर से उन्होंने पार्टी बदल ली है।
उनको लगता है ऐसा करके उन्होंने साहबज़ादे की किस्मत बदल दी है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
17.
ऐसे दर्दों को सीनों में ना सिला करते है।
यूँ हर रोज ही शराब को ना पिया करते है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
18.
इक वह है कि हमेशा ही गिला करते है।
उनसे कह दो यूँ अजीजे दिल ना मिला करते है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
19.
ना करो तुम हमको ऐसे रुखसत यूँ अपनी इन भीगी पलको से।
देखना फिर नया ख्वाब बनकर आएंगे एक दिन तुम्हारी नजरों में।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
20.
अब वहाँ भी कोई निशां रहे ना बाकी।
खुशियों भरी जिंदगी हमनें थी जहाँ काटी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
21.
देश का माहौल कैसा हो गया है।
हर तरफ हिन्दू मुस्लिम सा हो गया है।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
22.
वह नज़र ही क्या जिसमें अश्को की ना नमी हो।
वह मोहब्बत ही क्या जो मुकम्मल को जा मिली हो।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
23.
हम खुद में बेअक़ीदा हो चुके है तुमको अक़ीदे में ले कैसे।
इतनी तो तोहमतें लग गयी है अब एक और तोहमत ले कैसे।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
24.
एक तमन्ना है अपने माँ-बाप को हज पर भेजूं।
या इलाही कुछ काम दे दे थोड़े से पैसे इकठ्ठे कर लूं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
25.
माना कि औरों के मुकाबले कुछ ज्यादा पाया नहीं मैंने।
पर खुद गिरता सम्भलता रहा किसी को गिराया नही मैनें।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
26.
सब ही जल रहे यूँ ऐसे हमारे मिलनें से।
क्या मिल रहा है उन को ऐसे जलने में।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
27.
हर वक्त ही तुम हमसे लड़ते हो,
क्या चाहते हो जो ऐसा करते हो।
छोड़ो दो ये बे फालतू का गुस्सा,
हमें पता है तुम हम पर मरते हो।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
28.
इतने गुस्से में क्यों आप रहते हो,
कांटों में खिले गुलाब से दिखते हो।
हंस कर ज़िया करो अपनी ज़िंदगी,
सादगी में तो नूरे खुदा से लगते हो।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
29.
मौत है दिलरुबा यह जरूर आएगी,,
ज़िन्दगी का क्या भरोसा ये बस सताएगी!!
हर किसी से दूर करले गीले शिकवे,,
गर आयी मौत तो साथ लेकर ही जाएगी!!
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
30.
मैं चाह कर भी उसे छोड़ सकता नहीं।
वो मुझमे बसा है बुरी आदत की तरह।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
31.
ना पूंछ हाल उसकी ज़िंदगी का यूँ किसी और से।
जब दीवाना खुद ही सबको हँस-हँस कर बता रहा है।।
अब सादगी को कोई दुनियाँ में अदब में लेता नहीं।
सीधा-सादा होने पर हर कोई ही उसको सता रहा है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
32.
कुछ पैग़ाम लेकर आया हूँ,,,
मैं तुम्हारें गांव होकर आया हूँ!!!
तुम्हारी माँ मिली थी हमकों,,,
तुमको उसके साथ जी कर आया हूँ!!!
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
33.
कुछ पैग़ाम लेकर आया हुँ।
तुम्हारे गांव होकर आया हूँ।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
34.
यूँ खुद को निकम्मा बना डाला है।
हमने भी जिंदगीं में इश्क कर डाला है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
35.
जब था तब भी रुलाता था,,,
अब नहीं है तो भी रुला रहा है।।
ज़िन्दगी से तो चला गया है,,,
मगर वो यादों से ना जा रहा है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
36.
वह देखो ज़िन्दगी जा रही है बनकर मय्यत किसी की।
बड़ी परेशानी से गुज़री थी अब सुकूँ से तुर्बत में रहेगी।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
37.
तुमनें दिल लेकर ना दिल दिया है,,,
यूँ तुमनें भी की है हमसे बेमानी।।
सब शर्ते हमको मंजूर थी तुम्हारी,,,
पर तूने हमारी ना एक भी मानी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
38.
चलो उनसे गीले शिकवे मिटाते है।
फिर शायद यह ज़िन्दगी रहे ना रहे।।
इसका ना है यूँ भरोसा जरा सा भी।
जाने कल दोनों में कोई रहे ना रहे।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
39.
चलों माँ से मिलकर आते है।
कुछ अपने ज़ख्म भरकर आते है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
40.
कुछ कुछ वह मुझे खुदा सा लगता है।
मेरी हर जरूरत को वह पूरा करता है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
41.
सब में अब आम हो गयी है।
मोहब्बत यूँ बदनाम हो गयी है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
42.
देखो पैदा हो गया है काफ़िर के घर में मुसलमाँ।
इसी बात से वो रहता है हमेशा खुद में परेशाँ।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
43.
यूँ किस्मत सभी पर मेहरबां नहीं होती।
तुम्हारी तरह हर किसी की माँ नहीं होती।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
44.
चलो उसके लिए कुछ दुआ की जाए।
शायद यूँ ही उसको शिफ़ा मिल जाए।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
45.
हमको तुम अपनी दुआओ में याद रखना।
गर गलती हो गयी हो तो हमें माफ करना।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
46.
हर किसी को बेवजह यूँ हिरासत में ना रखते हैं।
मुल्क में ऐसी रंजिश की सियासत ना करते हैं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
47.
किस-किस से तुम छुपाओगे यूँ अपने गुनाह।
गनीमत इसी में है कि मान लो जो तुमनें है किया।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍,
48.
इश्क है हम दोनों में,,,
पर हमारे दिल ना मिलते है।।
जज्बात है हम दोनोँ में,,,
पर कोई ख्याल ना मिलते है।।
कहाँ पूंछे ये सवाल,,,
हमें कहीं जवाब ना मिलते है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
49.
अगर तुम समझ लो,,,
तो मोहब्बत की निशानी है।
वरना मेरी नज़रों में,,,
सब जैसा एक सा पानी है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
50.
सुना है तुम भी लिखते हो,,,
हमारी तरह ज़िन्दगी का हिसाब रखते हो।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
51.
चलो हमारी भी ज़िन्दगी इश्क में बर्बाद हो गयी है।
आशिको की फ़ेहरिस्त में हस्ती हमारी भी शुमार हो गयी है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
52.
चलो अब हम विदा लेते है,,,
एक दूसरे की दुआ लेते है।
देखते है तुम कब तक याद रखोगे हमको,,,
सुना है दुनियाँ गोल हैं लोग मिला करते है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
53.
सबकुछ भूल भाल कर हम फिर से तेरी ज़िन्दगी में आये थे।
हमें तो ज़रा सा गुमां ना था तुम यूँ गिन-गिन कर बदले लोगे।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
54.
जब याद करता हूँ उसको दिल गम से गुज़र जाता है।
बस यूँ ही वो बेवफा हमको कभी-कभी नज़र आता है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
55.
तुम्हारे खयालों से अलग हमारे ख्याल है,,,
देखो दोनों के जज्बात ना मिलते है।
यूँ तो सच्चा इश्क हम दोनों ही करते है,,,
पर देखो हमारें अंदाज़ ना मिलते है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
56.
ज़िन्दगी जीने में ना तकदीर देखते है।
जैसी भी हो मुनासिब इसको वैसे ही जीते है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
57.
देखो कितना अच्छा तुमनें सौदा कर लिया है,,,
यतीमों को खाना खिलाकर गुनाहों को अपने कम कर लिया है।
कहाँ इतने कम भर में ऐसी दुआएं मिलती है,,,
जैसी दुआओं से झोला तुमनें अपना पूरा का पूरा भर लिया है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
58.
गुनाहों की मेरे माफी मिल गयी।
माँ की दुआ फिर काम कर गयी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
59.
वह खुशियां बांटता है।
उसको पता है गम तो सभी के पास है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
60.
उसको बता दो धूल की क्या औकात है।
जब छूटेगा हवा का साथ आयेगी नीचे ही।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
61.
यह दौर चल रहा है सबको धोखा देना का।
शायद तुम भी मुकर जाओ मेरे इश्क से।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
62.
डर लगता हैं कहीं तुम भी ना बिगड़ जाओ।
वक्त जैसे आकर जिदंगी में ना गुजर जाओ।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
63.
सुना हैं बड़ा दर्द हैं तुम्हारे सीने के अंदर।
अपना समझकर कुछ हमें भी बताओ।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
64.
उनकी यादों में हम करवटें ही बदलते रहे है।
आज बीती सारी रात हम ऐसे ही जागते रहे है।।
सो रहा है जालिम हमको जगाकर सुकु से।
वह सोते रहे राहते नींद हम यही सोचते रहे है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
65.
तुमसे तो अच्छे अल्फाज़ तुम्हारें है।
जो झूठ ही सही पर लगते प्यारें है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
66.
मैं तो चला था जानिबे मंजिल तन्हा ही।
पर सफर में लोग मिलते गए यूं बन गया कारवां भी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
67.
मोहब्बत करने दो।
थोड़ा हंसने रोने दो।।
समझ आ जायेगी।
उन्हें इश्क करने दो।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
68.
मोहब्बत का फलसफा भी अजीब होता है।
ताउम्र पहला ईश्क ही दिल के करीब होता है।।
जिससे करो मुहब्बत वही रफीक होता है।
चाहने वाला ही अक्सर जां ने रकीब होता है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
69.
कभी शुमार होता था मेरा अमीरों में।
ऐसी शख्सियत थी मेरी जानने वालों में।।
जिदंगी का ना कोई भरोसा करना।
शामिल कब करवा दे यह गरीब वालों में।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
70.
इक आह सी निकली उन बुजुर्गों से।
आसमा भी गुस्से में आया लगता है।।
यूं देखा गरीब की बद्दुआ का असर।
खुदा इनका फौरन इंसाफ़ करता है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
71.
रहम करना खुदा हम पर।
जिदंगी काफिर बन रही है।।
मुझ अकेले की बात नहीं।
दूसरो की भी बदल रही है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
72.
सेहरा में समन्दर को देखा है।
रकीबों में रहबर को देखा है।।
शुक्र है तेरा मेरे रहमते खुदा।
हमने उनमें खुद को देखा है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
73.
सच का झूठ, झूठ का सच हो रहा है।
कीमत दो साहब आदमी बिक रहा है।।
जहां में इंसा महशर से ना डर रहा है।
देखो ख़ुदको सबका खुदा कह रहा है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
74.
यादें इन्सानो को हंसाती और रुलाती है।
यह यादें ही जो जीने मरने की वजह बन जाती हैं।।
बीते वक्त का हमको एहसास कराती हैं।
ना चाहे तो भी यादें आ करके आंखे भर जाती हैं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
75.
जब कोई हमसा मिलें तो हमें बताना।
बेकार का सबसे तुम्हारा मिलना मिलाना है।।
सुकूँन ना पाओगे जो हमसे मिला था।
सच्ची मोहब्ब्त का अबना रहा ये जमाना है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
76.
ख़ामोशी भी दिले यार का दिया तोहफ़ा होती है।
सजा जैसी ज़िंदगी लगती है गर बात ना होती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
77.
चांदनी के साएं में हम यूं ही पीकर बैठे है।
हर वक्त ना जानें क्यों तेरी ही याद करते है।।
यूं शोर ए मयखाने में ना चढ़ती हमको है।
इसलिए कमर को देख कर छत पर पीते है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
78.
बड़ा गुरुर था चांद को अपनी खूबसूरती पर।
देख कर मेरे दिलबर ए हुस्न को वो भी छुप गया है।।
क्या बताए सूरत ओ सीरत अपनें महबूब की।
खुदा ए फरिश्ता भी उसका दीवाना खुद हो गया है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
79.
किसी ने पूंछा हमसे खुदा को देखा है।
हमने कहा चलों हमारे घर पे मां को दिखाते है।
देखकर मां को उसे समझ आ गया है।
दुनियां में खुदा,मां जैसे ही बन करके आते हैं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
80.
अपनों से परेशान होकर वह दूर बस गया है।
कभी कभी गैरों से मोहब्बत दिलों को जोड़ देती हैं।।
पता है चार दिन की जिन्दगी लेकर आए हैं।
इंसानों ने सब पाने की अजब सी होड़ मचा रखी है।।
क्या करें तेज तर्रार इंसा भी कम बोलता है।
उधार उतारते उतारते जिन्दगी कमजोर बना देती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
81.
चलो गमों से प्यार कर लेते है।
वही ही अक्सर हमारे अपनो से होते है।।
मोहब्बत हमेशा ही रुलाती है।
जानें क्यूं लोग इसमें सपने सजा लेते है।।
✍✍️ताज मोहम्मद✍✍
82.
हर गम को हंसना सिखाते हैं।
चलो जिंदगी को जीना सिखाते हैं।।
कहां मिलेंगी फिर ये दोबारा।
सभी के दिलों को अपना बनाते है।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
83.
तुमको क्या पता ये इश्क क्या बला होता है।
आशिकों के लिऐ इतना जानो खुदा होता है।।
हाल सारे आशिको का सबसे जुदा होता है।
हमसे तो ना होगा बहुतों को बिगड़ते देखा है।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
84.
खुदा वाले कुछ तो ख़ास होते है।
सब्र के सागर उनके पास होते है।।
कितनी भी मुश्किल जिन्दगी हो।
हर हाल में बड़े खुशहाल होते है।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
85.
हमने की शराफत गुमनाम हो गए।
उन्होंने की बगावत मशहूरे आवाम हो गए।।
यहीं होता है आज कल जमाने में।
जिसने भी सब्र किया वह बरबाद हो गए।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
86.
जमाना हो गया है बोलने वालों का।
नाम हो गया है राज खोलने वालों का।।
हमतो चुप रहें बस इज्जते खातिर।
बन गया मुकद्दर गुनाह करने वालों का।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
87.
तुमने गुरबत की जिंदगी कभी जी है।
बड़े अरमान मारने पड़ते हैं गरीब को।।
किस्मत से गर एक पूरा हो जाता है।
बड़ा शुक्र देता है खुदा ए रफीक को।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
88.
तुम्हारा दिया गुलाब आज भी रखा है हो चुकी किताब पुरानी में।
यही तो बस ख़ास बचा है हमारे पास तुम्हारी इश्क ए निशानी में।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
89.
दिवानगी पर जोर किसका है।
दुनियाँ में हर कोई ही इससे हारा है।।
शरीक होता है जिस्मों जां पूरा।
पर इश्क में बदनाम दिल बेचारा है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
90.
देखो रुसवाई तो इश्क में मिलेगी।
इतना मानकर तुम पहले से ही चलना।।
मोहब्बत है तो दिल टूटेगा जरूर।
वक्त ए तन्हाई में होगा ना कोई अपना।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
91.
उनका हंसना क्या हुआ महफिल में जान आ गई।
हर नजर उठ गई इतनी मीठी आवाज कहां से आ गई।।
जिस जिस ने देखा चेहरा का उनका हुस्ने जमाल।
सबको यूं लगा जैसे हूरों की मल्लिका जन्नत से आ गई।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
92.
तुमनें जिस पल में यूं गैर बना दिया।
हमनें उसी पल में ही सब गवां दिया।।
अब रहा ना कुछ मेरे पास जीने को।
हमनें अपनी हश्रे मौत को बुला लिया।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
93.
उन्होंने हमसे की बेवफाई कोई बात नही।
वह हो गए किसी और के कोई बात नही।।
हम उनकी नफरत को भी इश्क करते है।
मुकद्दर में ना थे वह हमारे कोई बात नही।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
94.
कहा मुनासिब नहीं इश्क करना।
मेरा जमाने में इज्जते परिवार है।।
हर किसी का होता परिवार है।
बस उनको ही जैसे बड़ा ख्याल है।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
95.
अब यूं भी ना गैर बनो जैसे हमें जानते नहीं।
बड़ा वक्त गुजारा है साथ तुम पहचानते नहीं।।
इतना ख्याल रखो जरूरत पड़े तो आ जाए।
कहीं हम ना कह दे हम तुम्हें पहचानते नहीं।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
96.
उनके इतना भर कहने से हम पत्थर से हो गए कि हम तुम्हें जानते नहीं।
अब अकीदा ना रहा हमको यूं पत्थरों पर हम इनको खुदा मानते नहीं।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
97.
दिले मोहब्बत,आबे समन्दर की गहराई कोई क्या जानें।
बड़े-बड़े नजूमी,आलिम ना जान पाए वो भी है अंजाने।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
98.
कोई तुमको यूं ना चाहेगा जैसा हमनें चाहा है।
यूं काफ़िर बन गए है तुमको खुदा जो माना है।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍
99.
जालिम जिंदगी तू खूब सितम ढाले मुझ पर।
हम भी तुझे सहने की तमन्ना हरदम रखते है।।
तुझको हम भी बन करके एक दिन दिखाएंगे।
क्योंकि हम भी दुआ ए मां में हरदम रहते है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
100.
जोर ना हैं मेरा जीने में ऐ जिंदगी यूं तुझ पर।
हम उफ़ ना करेंगे बरसाती रहें गम तू मुझ पर।।
✍️✍ताज मोहम्मद✍✍