अलसाई सी तुम
अलसाई सी तुम
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1.
बहुत अच्छी लगती रही
नींद भरी आंखो से
मुझको देखती
अलसाई सी तुम,
हसीन सपने देखना
ज़ोर से ठहाका लगा के हँसना या
मुखड़े को चूमना,
आंखे खोल दुनिया कब कर पाती है?
पलक स्वतः इसके लिए बंद हो जाती है…
मैंने भी बंद आँखों से तुम्हें जाना है
बाहर और भीतर की तुम्हारी
खूबसूरती को पहचाना है
देखो तो सही सबके भीतर
यह मानवीय ताना बाना है
नफ़रत और खुदगर्ज के जज्बे को
बाहर का रास्ता दिखाने पर
बात खुद ब खुद बन जाती है
बहार यूं ही नहीं ज़िंदगी में आती है ।
2.
बहुत अच्छी लगती रही
नींद भरी आंखो से
मुझको देखती
अलसाई सी तुम,
माँ की भूमिका हो तो
थके हारे मचलते
बच्चे को वात्सल्यता के साथ
गहरी नींद सुला देती हैं
आँचल में छुपाकर
थोड़ा बहलाकर / लोरी गाकर
आहिस्ता के साथ
थप-थपा कर ।
3.
बहुत अच्छी लगती रही
नींद भरी आंखो से
मुझको देखती
अलसाई सी तुम,
होममेकर का किरदार
बढ़िया से निभाती
आधी रात बाद अक्सर
मेरी रूटीन ड्यूटी के लिए
देर रात पकाती ताजी सब्जी
साथ घी चुपड़ी गर्म तवा चपाती,
रखती रही मेरे टिफन में सहेज कर
मुझे दरवाजे तक छोड़ने आती
रोजाना ही मेरे बैग को
हल्की मुस्कान के साथ मुझे थमाती ।
4.
बहुत अच्छी लगती रही
नींद भरी आंखो से
मुझको देखती
अलसाई सी तुम,
पत्नी किरदार में प्रेयसी बन
घने अंधेरे में
रूमानी उजाला बन
प्रेम का अंकुर उगा देना
तुमको खूब आता रहा,
अनिश्चिंतता से ग्रसित
थके हारे पुरुष को और थका कर
आशाओं की शीतल समीर डुला
बेफिक्री की नींद सुला देना
तुमको खूब भाता रहा ।
-अवधेश सिंह