अर्थ काम के लिए
अर्थ काम के लिए निरन्तर, होते बड़े-बड़े अपराध।
हर सम्बन्ध गौण हो जाता, अपना ही बन जाता ब्याध।।
मायापति की माया समझें, यही सिखाता हमको धर्म,
यह सारी वसुधा कुटुम्ब है, लें अपनी लिप्सा यदि साध।।
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हमें काम का सुख पहुॅंचाते, मल के और मूत्र के भाण्ड।
इनका मोह त्याग दें यदि तो, हम न करेंगे कुत्सित काण्ड।।
काया से पैदा होता जो, वह भंगुर सुख है ही त्याज्य,
सात्विक प्रेम करें यदि सबसे, तो अपना सारा ब्रह्माण्ड।।
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ऊर्जा है हर वस्तु जगत की, जो चाहे वह कर ले प्राप्त।
इतना है प्राचुर्य कि कोई, वस्तु न होती कभी समाप्त।।
परमतत्व जिनके वश में है, उनको कुछ भी नहीं अप्राप्य,
नित्य दौड़ती है नस-नस में, ऊर्जा सारे तन में व्याप्त।।
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नहीं जानते हैं तो जानें, ऊर्जा हममें छिपी असीम।
अपनी ऊर्जा को जाग्रत कर, बन सकते हम अर्जुन-भीम।।
अपना स्वास्थ्य हाथ में अपने, यदि रहते हम सदा सचेत,
हम ही चरक-सुश्रुत-धनवन्तरि, हम ही हैं लुकमान हकीम।।
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महेश चन्द्र त्रिपाठी