अर्थकहीन
अर्थकहीन मनोरथ सभटा,
छल सपना सपने रहि गेल।
देखब कहिया दिन सुदिन हम,
दग्ध हृदय जरिते रहि गेल।।
छल द्वेष दंभसँ दूषित समाज,
उपहासे मात्र करइए।
मन मारि अपमान सहै छी,
झर्झर नोर बहइए।।
हम समाजक व्यंगात्मक ,
सम्बोधन सभ स्वीकार करै छी।
केओ बुझइए पिलिया कुकुड़,
तेकरो अंगीकार करै छी।।
छी समाजमे गौण-मौन हम,
गुजर करै छी खखरीसँ।
गाँधी वस्त्र बुरिबक बुझइए,
डर लगइए बकरीसँ।।
पौरुष-पैर पाँखि अछि काटल,
हाथ हथौड़ीसँ थुरल।
दगाबाज सभ दर्दे दइए,
स्वाभिमान सेहो चुरल।।
वस्त्रहीन छी देह उघार अछि,
सच पूछी दरकारो नञि अछि।
मंङलासँ के देत दयालु ,
हमरा लेल सरकारो नञि अछि।।
शब्दक हम छी कृषक अनारी,
नञि उपजइए मरुवा धान।
छी विचारमे बारूद भरने,
सुनक लेल नञि सक्षम कान।।
नञि पौरूष नञि पाग माथ मे,
छी समाज मे स्तरहीन।
हँसी हमर अछि बन्हकी लागल,
लए छी साँस बसातो कीन।।
भूखल नञि हम धन सम्मानक,
भूखल छी हम स्नेहक।
पलटि क पबिरइ छी हम गुदरी,
फाटल अपने देहक।।
जीवन भरि पतझड़ मे रहलहुँ,
नञि वसन्तकेर दर्शन भेल।
धरती आ आकाश सुखल अछि,
मधुमासो सुखले रहि गेल।।
जेबी मे अछि स्वर्ण निष्क नञि,
झोरी मे अपमान भरल अछि।
ठार भेल हम कनगी पर छी,
पैर मे कंकड़ काँट गरल अछि।।
होश -हबास नञि छी हताश हम,
लोक जजातक खअर बुझइए।
स्वार्थी सम्बन्धी सब रूसल,
किछु माङत ताँइ पर बुझइए।।
साहस संङ संकल्प जुटाक’,
कोहुना जीबि रहल छी।
भवन-भूमि नञि देलनि विधाता,
फाटल सीबि रहल छी।।
सावन प्यासल भादो प्यासल,
तरसै चान इजोरिया लेल।
कृष्ण-कर्म कें व्यवसायीगण,
कृष्णपक्षसँ रखने मेल।।
चुटकी भरि इजोतक कारण,
हमर घर अन्हार रहइए।
भेटल अछि उपहार गरीबी,
जीवन हमर पहाड़ लगइए।।
अपन लहाश अपने कनहा पर ,
कोहुना उघि रहल छी।
श्मशान आब कतेक दुर छै,
से नञि बूझि रहल छी।।
के जराओत एहि लाश खासके,
एहि बातक अछि चिन्ता।
उगल चान नञि रहल अन्हरिया,
जेकरे छल सिहन्ता।।
बेटी हमर रूप के रानी ,
बापे हुनक रुपैया हीन।
घटक मुँह पर थुकि दैत छल,
देत कथी इ दुखिया दीन।।
देह आत्मा बेचिक’ केलहुँ,
जे छल एकटा कन्यादान।
दशो दिशा अन्हार लगइए,
कहिया होयत नवल विहान।।
बेटीके छनि उजरल नैहर,
सासुर छनि लचरल लाचार।
भाय एको नञि बहिन मे असगर,
ब्रम्हा लिखलनि ब्रम्ह विचार।।
हम समाजक नजरि मे दोषी ,
दोषी हमर गरीबी।
हम अभिशापित हाथ मलै छी,
के छथि हमर करीबी।।
बुरिबक लोक बुरिबक बुझइए,
कबिलाहा फेकइए थूक।
साधनहीन गरीब बुझिक’,
सम्बन्धी लए जड़बए ऊक।।
रंग बीच बेरंग रहैछी,
फगुआ आऔर दिवाली।
दुनियाँ जखन भुलाएल रहइए,
विषवाला मधु प्याली मे।।
छी समाज के छोटकी भौजी,
छेड़-छाड़ अपमान सहक लेल।
हमहींट टा उपयुक्त मात्र छी,
नोनगर करुगर बात सुनक लेल।।
जीवन दीप मिझाएल हमर अछि,
कोयलीक बोली करुगर भेल।
स्नेहक जरल खाक भेल,
कारण दीपक मे नञि तेल।।
मन करइए त्यागि देबक लेल,
रिस्ता एहि संसार सँ।
महा सेज पर महा निन्द मे,
शयन करी अधिकारसँ।।