अरे कुछ हो न हो पर मुझको कुछ तो बात लगती है
गज़ल
1222/1222/1222/1222
अरे कुछ हो न हो पर मुझको कुछ तो बात लगती है
भले सब कुछ दिखाई दे रहा हो रात लगती है।
विरह की वेदना में अश्रु झर झर झर झरा करते,
चाहे कितना भी सूखा हो हमें बरसात लगती है।
बिना मेहनत मिले कुछ भी गवारा हो नहीं सकता,
ये इक अहसान करके दी गई सौगात लगती है।
कभी लंका कभी है पाक बॅंगला देश अब सोचो,
रहो चौकस मुझे साजिश या कोई घात लगती है।
जहां सौहार्द भाईचारा औ’र है प्यार आपस में,
वहां पर जिंदगी यारो हसीं नग़मात लगती है।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी