– अरमानों का जलना –
– अरमानों का जलना –
परिवार सदा रहा एकल परिवार सा,
रहे परिवार में सदा एकता,
एक दूजे के सुख दुख के साथ हो जाए,
रहे भले दूर -दूर पर दिल के तार न टूट पाए,
अपने तो अपने होते है इस बात को सार्थक कर जाए,
पर नजर लग गई आधुनिकता की,
नजर लग गई इस कलयुगी जमाने की,
साथ न अब रह पाते है,
जो था परिवार दादा परदादा से एकल परिवार में,
वो अब संयुक्त बनकर रह गया,
स्वार्थ में अंधे हुए सदस्य,
एकता को आधुनिक जमाना खा गया,
मेरा था अरमान संयुक्त परिवार का,
उसको एकल परिवार के चूल्हे में अरमान जला गया,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान