अरपा के तट पर
देखा जब पहली बार
चले गये थे, शरमाकर
क्योंकि सुमार था
तुम्हारी आदतों में
बुरा नहीं लगा था, मुझे
इसीलिये आता हूँ बार-बार
पास तेरे, तुझे निहारने की खातिर।
अब तुम डरने लगे थे
मेरे इस स्नेह को देखकर
कि कहीं चला ना जाय यह भी
थमा फिर से एक धुधली याद।
चेहरा तप रहा था
प्रतिबिम्ब रक्त सा लाल
ज्वाला निकलने लगी थी, उस क्षण
तेरे रजत-नीर धारा से।
आता फिर भी पास तेरे
ले उम्मीद कि, मिलोगे एक दिन जरुर
खुले दिल, बाहे फैला
हुआ और एक सूर्यास्त
छोड़ गयी लालिमा, रोज की तरह
मेरी बाहों में अंधेरा, आज भी
लौट आया, कह बस इतना
कल फिर आऊँगा,
मिलने तुझसे तट पर तेरे,
अरुण बेला में
और जोहूँगा बाट तेरी, रोज का भाति
गोधूलि बेला तक।