अरदास भजन
मांगते हैं सत्गुरु जी, सर पै दे दो साया।
बना नहीं सत्संग भवन ,क्या दोष है हमारा।
24 साल पहले बख्शा, भूखण्ड बडा़ कीमती। आज तक करते आ रहे ,बनाने की वीनती।
सेवा में कमी है कोई-२ कर दो इशारा। । (१)
बना नहीं सत्संग भवन——-
ऊबड़- खाबड़ भूमि सारी बैठन को चटाई ना।
बहुत सारे बैठ गये आनेवाले भाई यहां।
आये हुऐ वापिस हो गये -२ देखके नज़ारा। (2)
बना नहीं सत्संग भवन ———-
आंधी -वर्षा धूप में भी, राह कोई दिखती नहीं। ठंडी में भी सेवा दल की ,सेवा कभी रूकती नहीं ।
सेवा से मिलेगी मेवा -२ यह ध्यान है हमारा। (३)
बना नहीं सत्संग भवन ————
झांसे तो बतेरे मिले, आज तक ना पूरे हुऐ।
बहुत सारे चले गये ख्वाब ले अधूरे हुऐ।
अरदास अंतिम है ये -२भवन बने प्यारा। (४)
बना नहीं सत्संग भवन———–
सच्चाई को निंदा कहें, ये तो कोई दस्तूर नहीं।
किससे कहें बात अपनी, सुनता कोई हजूर नहीं।
हिम्मत और विश्वास मांगता -2″,मंगू” जग तारा। (५) साध संगत पूछ रही, -२ झोलियां पसारा ।
बना नहीं सत्संग भवन ———