अयोध्या आगमन
वार्णिक छंद
शैल सुता छंद
शीर्षक—आयोध्या आगमन
मापनी-111 121 121 121 121 121 121 12
अगन समान दिखे मुख मंडल रावण क्या कुछ पावत है?
जप-जप नाम सिया रघुनंदन कौशल धीश मनावत है।
अतुलित दाव धरे दसकंधर एक नहीं बन पावत है।
निशिचर भूप भयो अति मूरख पावक हाथ जलावत है।
विटप अशोक पड़ी जब मात सिया सुध लेवन जावत है।
तुम दस कंधर मार सिया जब पुष्प विमानन लावत है।
जगमग रूप धरे धरती तम घोर हटे रघु नागर के।
पट घृत तेल जले बन दीपक भाव विभोर उजागर के।
घर-घर ताल बजे चिमटा अरु ढोलक झांज बजावत है।
शुभ -शुभ मंगल गावत गीत मनोहर रीत निभावत है।
अवधपुरी मन भावन होकर आतुर होवत दर्शन के।
नयनन नीर भरे सुख के जल पांव पखारन हर्षन से।
धर पकवान दधी घृत पेय सियावर राम विलोकत है।
सुमन सिहासन राम बिठावत चंवर झोलत जावत है।
रघुवर राम सिया सुखदायक पाप मिटावत जावत है।
धर मुख नाम सदा भव भंजन नाम अति मनभावन है।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश