अम्मा
स्वेटर में भाव समाहित कर
रिश्ते बुनना जाने थीं तब
ईंटे चुनकर अपना एक घर
अम्मा गढ़ना जाने थीं तब
अपने रुनझुन से ऑंगन में
किलकारी भरते बचपन में
मनमोहक नन्हें क़दमों संग
अम्मा सजना जाने थीं तब
अपने हाथों की गर्मी से
सपनों की छिपती नर्मी से
एहसासों से अनुभव चुनकर
अम्मा बॅंटना जाने थीं तब
अक्सर टकराहट होती थी
टेढ़ी-मेढ़ी सी रोटी की
मीठी झिड़की दे सबका मन
अम्मा भरना जाने थीं तब
चेहरे रंग बदलते से थे
उखड़े-बिलखे जब लगते थे
चुप्पी के हर एक भाव को
अम्मा पढ़ना जाने थीं तब
निर्धन की आकुल क्षुधा मिटा
निर्दोष क्लेश को परे हटा
पलकों पर उज्जवल समय सजा
अम्मा बसना जाने थीं तब
हालातों से ना हारी थीं
अपनों पर जीवन वारी थीं
अपने कुटुम्ब की अल्पें ले
अम्मा मिटना जाने थीं तब
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ