अमूक दोस्त ।
अमूक दोस्त नादान ना बन,
ओ पीड़ा हर्ता, पीड़ा को ना जन ।
एक दूसरे के दिल में झांका था हमने,
थोडा सा आश्वासन दिया था तुमने।
शायद आसमान लगा था मैं चूमने,
इस गलती में भी था अपना अपनापन ।।
अमुक दोस्त ………….
ठुमक ठुमक मैं लगा था चलने ,
कुछ कीट-क्रिटिक लगे थे जलने ।
शायद दिल में अरमान लगे थे पलने,
लोगो की सुन दिखाया मैने बहरापन।।
अमूक दोस्त ……………
समय थोडा यू दिल पर पत्थर ना मार ,
हुई गलती दे सिर मेरा सिर उतार।
शायद मेरी कविता बनी मुझपर भार,
कवि में आ गया था लड़कपन ।।
अमूक दोस्त………..
विवर्ण हुआ आज खुद सत्य,
फूल अकेला बात हुई न असत्य ।
शायद भूल गया मैं नेपथ्य,
दे अस्थि पिंजर में प्राण होगा बड्डप्पन ।।
अमूक दोस्त ……….
सतपाल चौहान।