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27 Sep 2021 · 1 min read

अमीर-ए-शहर से इतना सवाल कर देखो

तअल्लुक़ात की सूरत निकाल कर देखो
मिरे ख़्याल को अपना ख़्याल कर देखो

खुशी, सुकून, मसर्रत, निशात के लम्हे
किसी ग़रीब की झोली में डाल कर देखो

जो चाहो सब्र की लज्ज़त से आशना होना
तुम अपने घर में भी पत्थर उबाल कर देखो

जिसे ग़ुरूर है अपने अमीक़ होने का
तुम ऐसी झील को तह तक खंगाल कर देखो

हम एहले ज़र्फ़ हैं ज़िन्दा ज़मीर रखते हैं
हमारी सिम्त न आँखें निकाल कर देखो

हमारे ख़ून से कब तक दिए जलाओगे
अमीर-ए-शहर से इतना सवाल कर देखो

2 Likes · 4 Comments · 288 Views

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