अमानत
अमानत
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महफूज़ है
मेरी बंद हथेलियों में
तुम्हारी आंख से ढुलके
अनमोल अश्क
जो अमानत हैं तुम्हारी
संभालकर रखे थे तुमने
अरसे से आंखों की
कोर पर तुम्हारे
बहाकर ले जाना चाहते थे
साथ अपने आंखों में बसे
ख्वाबों को तुम्हारे
बिखर जाते अश्क़
गिरकर जमीन पर
रौंदा जाता इन्हें पैरों तले
काफी होता यह मिटाने को
बिखरे ख्वाबों और
वजूद को तुम्हारे
खोलकर मेरी हथेलियां
ले जाओ अमानत अपनी
अनमोल अश्क़ अपने
संभालकर रखना इन्हें
आंखों में अपनी
बचाकर रखना है हमें
वजूद को तुम्हारे……………
— सुधीर केवलिया