अमलतास तरु एक मनोहर
ग्रीष्म ताप पर प्रतिस्पर्धा में
जीत सदा ही वो पाता है
पीत वसन में सँवर सँवर कर
जो लहर लहर मुस्काता है ।
तप्त हवा के संस्पर्शों से
मोहक रूप निखर जाता है ,
झूमे यौवन की मस्ती में
पुष्प – मुकुट धर इठलाता है ।
अमलतास तरु एक मनोहर
जिसको संग धूप का भाता
शीतल छाया सबको देकर
अहंकार से शीश उठाता ।
डॉ रीता
आया नगर , नई दिल्ली