अभी मत जा सावन
अभी मत जा सावन , भीगना तोह अभी बाकी है
कुछ ही दिल जीते है, कुछ को जीतना अभी बाकी है
ज़ख़्म जो सूख गए थे, उनको फिर से तूने हरा किया
उन पुराने ज़ख्मो पे,ताज़ा मरहम लगाना अभी बाकी है
बरसो लड़खड़ाने के बाद अभी अभी संभला ही था दिल लेकिन
उसी मयखाने में आ फिर खड़ा हूँ,गुम न जानें कहाँ हुआ साकी है
निराश थकी आँखों से आसमान की तरफ देखते किसान की
बुझी बिखरी फसलो का कर्ज़ अभी चुकाना बाकी है
अभी मत जा सावन , भीगना तोह अभी बाकी है
कुछ ही दिल जीते है, कुछ को जीतना अभी बाकी है
बारिश से घर के आंगन में भरे हुए पानी में
अभी वो कागज़ की कश्ती चलाना बाकी है
अभी तोह दफ्तर के बाद जाम में फसकर घर पहुंचे है
अभी तोह गरम चाय के साथ पकौड़े खाना बाकी है।
बरसों बाद फिर से ऐसे टूट के बरसे हो फिर तुम
भीगे है लेकिन बचपन की तरह भीगना अभी बाकी है।
अभी मत जा सावन , भीगना तोह अभी बाकी है
कुछ ही दिल जीते है, कुछ को जीतना अभी बाकी है ।
– विवेक कपूर