अभी आया हूं अपने चाक दामन को रफू करके
ग़ज़ल
अभी आया हूं अपने चाक दामन को रफ़ू करके।
है छोड़ा मुफ़लिसी ने यूं मुझे बे-आबरू करके।।
दुखी ख़ुद को बनाया है खुशी की आरज़ू करके।
सुकूं खोया है ख़ुद मैने सुकूं की जुस्तजू करके।।
मुनासिब है अभी रिश्ते हवाले वक़्त के कर दें।
बढ़ाये फासले हैं और हमने गुफ़्तगू करके।।
अदावत अहले-दुनिया से बढ़ाते फिर रहे हो तुम।
मिलेगा क्या भला तुमको ज़माने को अदू करके।।
ग़ज़ल कहना मेरा भी तो इबादत से नही है कम।
मेरे अश्आर में अल्फ़ाज़ आते है वुज़ू करके।।
“अनीस ” उंगली उठाने की ज़रूरत अब नही तुमको ।
हैं ढूँढ़े ऐब ख़ुद में आईने को रू-ब-रू करके।।
– अनीस शाह “अनीस”