*अभिशप्त*
अभिशप्त
उसकी सास के मन में जरा भी ममता न थी। वह उनके ताने, उपेक्षा व अपमान के कड़वे घूंट पीती रहती। पोते की ख़्वाहिश ने लीलावती जी को बहु श्यामा के प्रति कठोर बना दिया था। उसका दुर्भाग्य उससे दो कदम आगे चलता। पैदा होने के कुछ महीनों बाद ही उसकी मां भगवान को प्यारी हो गई। सौतेली माता की देखभाल में उसने होश संभाला। किशोर अवस्था आते आते वो सौतेली मां की निगरानी में चूल्हा-चौके से लेकर घर के सभी कामों में पारंगत हो गई। सौतेली मां पिता पर श्यामा के हाथ पीले कर देने का दबाव ड़ालती रहती।आखिर अठ्ठारह वर्ष की होते ही पिता की लाड़ली बेटी श्यामा को ईर्ष्यावश सौतेली मां ने वर का इंतजाम कर, पराया धन लौटाने का निश्चय किया। शुभ मुहूर्त निकलवा कर उसे बड़े घर की बहु बना विदा कर दिया। किन्तु ये बात और है कि ये शुभ मुहूर्त जीवन भर उसके लिए अशुभता ही लाता रहा।
बड़ा घर सिर्फ जमीन जायदाद से ही बड़ा नहीं था अपितु कुनबा भी बहुत बड़ा था। चार जोड़े जेठ-जेठानी,एक गाड़ी भर उनके बच्चे सास ससुर सबका काम का बोझ श्यामा पर ही आन पड़ा था। वह समय के साथ दो बेटियों की मां बन गई। उसकी चाँद सी दोनों बेटियाँ सास की आँखों में खटकने लगीं। जेठानियों के काले कलूटे बेटों को खूब लाड़-दुलार से रखा जाता। बस एक पति ही था जिसके प्रेम के सहारे वो सब दुख भुला देती। पति मोहन ने पत्नी व बेटियों के साथ दुर्व्यवहार होते देख अलग रहने का निश्चय कर लिया। घर, व्यापार ज़मीन जायदाद सब का बंटवारा हो गया। उनके हिस्से में चाहे छोटा मकान ही सही पर सुकून भरा था।
दोनों बेटियां पढ़ाई में बहुत लायक थी जबकि जेठों के लड़के गांव भर में आवारागर्दी करते घूमते। बड़ी बेटी को बारहवीं के पश्चात आगे की पढ़ाई के लिए शहर में भेज दिया था। किन्तु सुकून की सांस लेना श्यामा के नसीब में नहीं था। दुर्भाग्य उसका साथ छोड़ने वाला नहीं था। एक दिन श्यामा का पति बेटी को होस्टल छोड़ने गया तो फिर वापिस नहीं आया। पिता-पुत्री की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई। श्यामा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।भाई की मृत्यु के कुछ महीनों बाद ही जेठ और उसके लड़के उसके हिस्से की सम्पत्ति को हड़पने के तरीके ढूंढ़ते रहते। कभी श्यामा के पुनर्विवाह का प्रस्ताव रखते तो कभी छोटी बेटी के विवाह का। जीवन की परिस्थितियों ने उसे बहुत समझदार बना दिया था।सो किसी की एक न चल पाई। समझदार, सयानी श्यामा को दुर्भाग्य ने एकबार फिर मात दे दी थी।
उसकी अनुपस्थिति में एक दिन बड़े जेठ के साले ने बेटी के कमरे में घुस कर अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया। किन्तु समझदार मां की समझदार बेटी ने उसकी खूब धुनाई की और जब दरवाजा खोला तो उस लड़के के समर्थक गांव वालों के साथ भीड़ लगाये एकत्र हो गये। उस युवक ने सबको बताया कि वो तो लड़की के कहने पर ही अन्दर गया था। श्यामा की बेटी सभी को लड़के के गाल पर छपे अपनी उंगलियों के निमंत्रण के निशान दिखाती रही, पर किसी ने एक नहीं सुनी। श्यामा के दुर्भाग्य की छांया उसकी बेटी पर भी पड़ गई थी। दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए पंचायत बैठी। अपील हीन फैसला हुआ। कलयुग को दोषी मान दोनों को पति-पत्नी बनने की सजा दी गई। असहाय अभिशप्त-सी श्यामा बेटी का जीवन बर्बाद होते हुए, क्रोधित नेत्रों से होने वाले दामाद को तो कभी कुटिल-समूह की तरफ़ देख रही थी।
—राजश्री—