अभिशप्त शहर
मेरे गाँव के
चौपाल का वह
पीपल का पेड़
जिसके नीचे
होली पर फाग
गाई जाती थी
ईद पर सिमयीयो का
दौर चलता था
प्यार एकता का
प्रतीक था वह वृक्ष
दूर से पीपल के पेड़ को
देख कर मन परफुलित
हो जाता था
शहर फैलते गये
गाँव सिमटते गये
मेरे गाँव का
पीपल का पेड़
अब शहर के छोर पर
आ गया
एकदम सुनसान
अब वहां होते हैं
लूटपाट और मारपीट
मेरे गाँव का
प्यारा सा पेड़
अभिशप्त हो गया है
शहर के फैलने से
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल