अभिव्यक्ति की आज़ादी
त्वरित कलम घिसाई
तुम्हे फ़िल्म बनाना आता है।
हमे हाथ चलाना आता है।
इसमें अलग कोई बात नही ।
सबको समझाना आता है।
हुनर अपना अपना है जी।
बात यह सीधी सादी है।
तुमको हमको सबको ही
अभिव्यक्ति की आजादी है।
तुमको जो आता है हुनर,
उस हुनर को चुनते हो।
हम भी चुनते हुनर हमारा
फिर काहे को सर धुनते हो।
तुम्हे बाप का नाम पता नही
सिर्फ मैया का नाम पता।
इसिलिय तो नाम बाप का
तुम्हारे नाम से लापता।
संजय जो भी लीला तुमको
दिखलानी हो दिखला दो।
हमारा नाटक भी देखो फिर
क्या अंतर है सिखला दो।
छेड़छाड़ करोगे तुम जो
वीरो के इतिहासों से।
भूगोल बदल देंगे हम
सुनो तुम्हारी सांसो से।
शिशुपाल सी आदत हो गई
सो फ़िल्म पर फ़िल्म बनाते हो।
सहनशीलता वाले कृष्ण को
जो फिजूल उकसाते हो।
चक्र सुदर्शन वाला फल भी
शायद तुम तो भूल गए।
अपनी झूंठी शोहरत में
फंसकर गुरुर में झूल गए।
आस्थाओं के दुश्मन वाले
कानून का लाभ उठाते हो।
इसिलिय अपनी फिल्मो में
आस्थाओ का खून कराते हो।
तो सुन लो अब कान खोलकर
बात यह बिल्कुल सादी है।
कायर और डरपोक नही है।
हमको अभिव्यक्ति की आज़ादी है।
*****मधु गौतम