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9 Jun 2018 · 1 min read

“अभिलाषा”

“दिल की धड़कन कहती है,तुम मेरी अभिलाषा हो,
स्वर की जो मोहताज नहीं,नयनों की वो भाषा हो,
अनुकृति नहीं जिसकी,तुम वो सुन्दर रचना हो,
मन में बसी सुखी-स्वप्न सी,
भावुक क्षणों की संजना हो,
तेरे चलने से चलती है,संसार की क्रम धारा,
रुक जाती तो थम जाता,विश्व उपक्रम सारा,
तुम सवालों से सजी हुई,मन की अल्पना हो,
मेरे ख्यालों की मधु कल्पना हो,
पलके अगर उठा लो तो,सूरज निकल आता है,
पलके झुक जाए तेरी तो,दिन ये ढल जाता है,
तुम मुस्काओ तो मुस्काते धरती और गगन,
खिल उठती हर कली बाग की,
सुन्दर दिखते वन उपवन,
भावों से हर गीत भरे,ज्ञान की तुम व्यंजना हो,
सृजन भाव है तुझमें तुम अर्चन वंदना हो,
तुम ही उज्ज्वल सोच तुम मेरी कल्पना हो,
स्वप्नों का स्वरूप हो तुम,तुम मेरी परछाईं हो,
बाधाओं से मुक्त कराती,तुम मेरी रिहाई हो,
देवदार की गूँज हो तुम,अनसुलझी -सी पहेली हो,
मस्ती में झूमती मस्त हवा अलबेली हो,
पथ अवलोकित करती मेरा,तुम मेरी आशा हो,
शुभ्र ज्योतसना सी थिरकती,
मेरी कविता की परिभाषा हो”

Language: Hindi
243 Views
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