अभिलाषा
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नहीं चाहती सुरबाला सी
इठलाना तुमको ललचाना।
नहीं चाहती प्रेमी बनकर
देह तुम्हारा,पौरुष पाना।
वांछित बनना, उत्स तुम्हारा
बन आलोक तेरे पथ जलना।
मातृभूमि की गरिमा कहने
हे कवि,मरकर,पुन: जनमना।
——————–18/9/21 —————————
पुनर्लिखित