अभिमानी
अभिमानी
जनता माटी का मुरत नही
समाज का खुबसुरत है
दस बीस का लिया निर्णय
यह तो बहुत बद सुरत है
जमालेता है रंगमंच समाज
समाज के कुछ ठेकादारो ने
कर देता है लीलाम गर्व को
खुले आम सड़क बाजारों में
जरूरत नही जनता का उनको
मान सम्मान का परवाह नही
एक आंख को अर्जुन दिखत है
रूपए को देखें भगवान सही
अब आदिकाल का महा पाषाण
पानी परत तो घुरत है
जनता कभी माटी का मुरत नही
समाज का खुबसुरत है
जब बिन जनता को साथ लिए
करता है कुछ मनमानी
नाश होवत है एक दिवस को
रावण,दुर्योधन,कंस अभिमानी
कवि
डां विजय कुमार कन्नौजे
अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ