अभागिन
विधवा हुई है तू
तोड़ दे सब सब
चूड़ियाँ
दादी ने साफ़ कह दिया था
पोंछ दे सिंदूर,माथे की बिंदिया
बता रहीं थीं
माँ, बुआ और
पड़ोस की विधवा
मौसी सास
सामने मत पड़ना
किसी शुभ कार्य में
सारे कर्तव्य सिखा रहीं थीं
मोहल्ले भर की औरतें
बदनसीब है बेचारी
दो बरस ही
सुख भोग पायी पति का
फेफड़े गल गए थे
शराब के कारण
सारी सखियाँ
दुःख जता रहीं थीं
अभागी है तू
डोली आयी है यहाँ तेरी
तो
अर्थी भी जाएगी यहीं से
पूरे घर की सेवा करना
शायद सुधर जाए
अगला जन्म
अम्मा दे रहीं थी
अंतिम सीख
चुभ रहा था
पिसा काँच कानों में
चाची की टूटती
हरी चूड़ियों से निकल कर
हवाओं में जो घुल गया था
पूरे प्रकरण में
कहीं पुरुष न था