अब सवाले इश्क़ पर तू हाँ कहेगा या नहीं
पेचो ख़म बातों का, तेरी ज़ुल्फ़ों सा सुलझा नहीं
अब सवाले इश्क़ पर तू हाँ कहेगा या नहीं
मेरी उल्फ़त की उड़ाई जा रही हैं धज्जियाँ
यह तमाशा क्या मेरे मौला तुझे दिखता नहीं
है वज़ूद इस आईने का अब तलक जो बरक़रार
शायद इसके रूबरू आया कोई तुझसा नहीं
मुस्कुराना ही फ़क़त है बाँटना खुशियाँ तमाम
मुस्कुराकर देख तेरा कुछ भी जाएगा नहीं
लोग कुछ मेरे लिए पाले हुए हैं यह फ़ितूर
कहने को ग़ाफ़िल है पर है वाक़ई ऐसा नहीं
-‘ग़ाफ़िल’