अब वापस नहीं आऊंगा
अब वापस नहीं आऊंगा
टूटा हुआ है जीवन संबल
टिस कई उगता है
वेदना गोद से माँ आँचल तक
कई दिनों से रो रहा हूँ
जाने कहां तक जाऊं
प्रभु अब जीवन को विराम दो
अब वापस नहीं आऊंगा
वीरान लगती है काशी वसुंधरा
जागेश्वर तुम कहां चले गए हो
तुमने मैथिल कोकिल को वचन दिये
सदा करूंगा वास यहाँ
क्या पुण्य प्रबल नहीं है मेरा
मेरे आँसुओं से तनमन तेरे धुले नहीं
कब से रुठे हो मुझसे , क्या चलू
अब वापस नहीं आऊँगा
सुख आस नहीं है मुझको
पंथ मे ना पुष्प बिछाना
जीवन की इच्छा तराजू पर क्यों रखू
क्यों मै बोलू जीवन अनमोल बड़ी
झरने की कलकल, फुलों की महक
हृदय मे एक टिस बढाती है
फिर मुगल अत्याचार से रोया हूँ
मैं बहुत अभागा हूँ
गंगा माँ मेरी वजह से नहीं आएगी
क्या मैं तेरा पुत्र नहीं, क्या चलू ?
अब वापस नहीं आऊँगा
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य