” अब मिलने की कोई आस न रही “
छोड़ गयें तुम जब से मोहे,
तब से अधूरी सी लगती हूँ,
कभी सोती कभी जागती हूँ
कभी खोई खोई सी लगती हूँ…
तेरे ख्यालों मे डूबी रहती हूँ,
तुमनें चहा भी तो बस कुछ
ही पलों के लिए, लेकिन फिर भी
मैं तेरे ही सपनों में रहती हूँ…
न अब मिलने की कोई आस रही
न ही तुम्हें खोने का अब डर रहा
तुम जीते रहो अपनी जिन्दगी, अब
ना कोई तुमसे मिलने कि प्यास रही…
गुम सी हो गई जीवन की हर राह
अब, तुम्हारे साथ छोड़ने से
जिन्दगी मे अब न कोई मंजिल रही
ना ही कोई सफर कि शुरुआत रही,
लेखिका- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना