अब भी संभल __ कविता
कीमत वक्त की समझी नहीं उसे कहां रुकना था।
वह चला चलता रहा एक तू है वहीं का वहीं था।।
जो पाना था तुझे _ मिलता सब कुछ तुझे यहां।
प्रयास तूने किया नही मेरे दोस्त सभी तो यही था।।
जिसे बढ़ना था वह लड़ा नहीं बढ़ता रहा हमेशा।
फैसला जो उसने किया था वो कितना सही था।।
अब भी संभल चल घर से निकल मंजिल के लिए।
बनता जाएगा रास्ता चलने वाले ने कहा यही था।।
तकदीर साथ देगी तेरी अपने जज्बात तो जगा ले।
करता विनय “अनुनय” कर्म सबका चाहता यही था।।
राजेश व्यास अनुनय