अब भी वक्त है
अब भी वक़्त है संभलने का
दुनियां के संग संग चलने का
मन का तो काम मचलने का
पर सीख, सलीखा ढलने का
निरंतर ये समय निकलने का
पीछे फ़िर हाथ, ना मलने का
कवि आजाद मंडौरी
अब भी वक़्त है संभलने का
दुनियां के संग संग चलने का
मन का तो काम मचलने का
पर सीख, सलीखा ढलने का
निरंतर ये समय निकलने का
पीछे फ़िर हाथ, ना मलने का
कवि आजाद मंडौरी