अब बस बदन
कुछ इंचों के ये माँस के लोथड़े,
भोग हुआ और शिथिल पड़े ।
यौवन के साम्राज्य में फँसी देह-कंचन,
अब बस बदन, बस बदन, बस बदन ।
ये जो चमड़ी है ना?
इसके अंदर भी कोई रहता है ।
इक लहू भी है जो इस तन में बहता है…
मगर मर गई रूह, विलुप्त हुआ मन,
अब बस बदन, बस बदन, बस बदन ।
स्पर्श, सामीप्य, अठखेलियाँ,
सहेले और सहेलियां ।
गँवा दिया नूर…
और कहते हैँ कुछ ले लिया कुछ दे दिया?
वो मेरा ना हुआ सदा का, लाख किया जतन
अब बस बदन, बस बदन, बस बदन ।
कहानी हो सकती थी ये कविता में सिमट गई,
रूह की बात, बदन पे निपट गयी ।
कहे “सुधीरा” बहुत कुछ हुआ रे पतन…
अब बस बदन, बस बदन, बस बदन ।
#सुधीरा #sudhiraa