अब नहीं तो कब तुम सम्भल पाओगे(कविता)
ओ अंगिका बज्जिका सूर्यापूरी मैथिली राजनीति जान जब जाओगे !
तूफान में लडे़ हो या अपनो से लडे़ हो समझ जब जाओगे !
जब मात्रभाषा मिटेगी संस्कृति पहचान मिटेगी !
जिसने तुम्हें लड़ाया एक है,
जानोगे मैथिली बोली अनेक है,
वो स्वार्थी रथ का घोड़ा है,
कई सदियों से तुम्हें लुटा है,
अब नहीं तो कब तुम सम्भल पाओगे ?
ऐसी जिदंगी बनी अपनो कि पहचान नहीं है !
नफरत अपनो से जहरीला नाग साथ है हर पल हर घड़ी !
दिनकर रेनू भी अपनो से ही हार थे ,
क्या हम भी अपनो से ही हार जाऐगे,
अब नहीं तो कब सम्भल पाओगे !