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2 Oct 2021 · 1 min read

अब नहीं तो कब तुम सम्भल पाओगे(कविता)

ओ अंगिका बज्जिका सूर्यापूरी मैथिली राजनीति जान जब जाओगे !
तूफान में लडे़ हो या अपनो से लडे़ हो समझ जब जाओगे !
जब मात्रभाषा मिटेगी संस्कृति पहचान मिटेगी !
जिसने तुम्हें लड़ाया एक है,
जानोगे मैथिली बोली अनेक है,
वो स्वार्थी रथ का घोड़ा है,
कई सदियों से तुम्हें लुटा है,
अब नहीं तो कब तुम सम्भल पाओगे ?

ऐसी जिदंगी बनी अपनो कि पहचान नहीं है !
नफरत अपनो से जहरीला नाग साथ है हर पल हर घड़ी !
दिनकर रेनू भी अपनो से ही हार थे ,
क्या हम भी अपनो से ही हार जाऐगे,
अब नहीं तो कब सम्भल पाओगे !

Language: Hindi
5 Likes · 419 Views
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