अब दिल लगा कर वो इश्क में सदा के लिए दूर जाना चाहता है
अब दिल लगा कर वो इश्क में
सदा के लिए दूर जाना चाहता है
समुंद्र में बहती हुई कश्ती का
अब वो ठिकाना चाहता है
नहीं मिलता वक्त उन्हें मिलने का
दूर होने का कोई बहाना चाहता है
नहीं है कोई फरमाइश हमारी
वो फिर भी अजमाना चाहता है
मंझधार में फंसी कश्ती है
वो सदा के लिए डुबाना चाहता है
सपने ऊँचे दिखाकर वो
धरा पर गिराना चाहता है
अफ़साना तो मुश्किल है बनना हमारे दरमियान
वो तो इश्क को अब पेहली बनाना चाहता है
आग लगा दी हां आब में
तपिश में अपनी जलाना चाहता है
भूपेंद्र रावत
6/11/2017