अब तो हद हो गई
कविता
अब तो हद हो गई
एक नाम हैं अब ये आया,
झूँठ में जिसका बवबाल मचाया,|
अधिक हैं उसमें चतुराई छाई,
झूँठ झूँठ से उल्लू बन आई,|
तरह तरह के लोभ दिखाता,
आज तक उसे कोई समझ न पाता|
किस किस भेस में ये आ जाता,
जाने कितने अजब गजब ये रंग दिखाता,|
पढे़ लिखे फस गये इसके चक्कर में,
झूँठ बोलने में नहीं कोई इसके ठक्कर में,|
जब कोई इस पर बात उठाता ,
तरह तरह के मुद्दे बनाता,|
आज तक इसे कोई समझ न पाया,|
ये कुर्सी पर कैसे आया,|
किसान को इसने अमीर बताया,
उनकी मेहनत का मजा़क उडा़या,|
हमारें लिये खजाना खाली बतलाया,
कई मोटो को पैसे लेकर फूर उडा़या,|
पढे़ लिखों ने सवाल उठाया,
उनको इसने लाठी से पिटबाया,|
इसका कोई ये पता नहीं हैं,
कौनसी हैं डिग्री कर के यहाँ पर आया,|
कहता देश बदल रहा हैं,
पढे़ लिखे को पकोड़ा तलबाता,|
क्या इसी लिये हैं शिक्षा हैं पाई,|
पकोडें तलना माँ बाप सपना होई,|
विदेश में ये घूमने को जाता,|
घूमना इसका समझ नहीं आता,|
तरह तरह के ड्रैस बनवाता,
अपने आप को फक़ीर बतलाता,|
जब हैं भाषण देने आता,|
जुमलेबाजी में समय बिताता,|
कैसे देश में आर डी ऐक्स आया,
इसको कोई अभी तक समझ न पाया,|
जब किसी ने इस पर सवाल उठाया,
उसको इसने देश द्रोह ठहराया,|
खुद तो कुछ ये कर नहीं पाया,
दूसरों पर सवाल उठाया,|
काम कोई पूरा हुआ नहीं हैं,
संशोधन में हाथ बढा़या,|
जब इसके विरोध में कोई आँगे आया,|
उसको इसने जैल में डलबाया,|
अब तो हद हो गई संभल जायें,
जल्दी इसको झोंला लेकर दूर भगायें,|
जब कोई झूँठो को बाते सुनाऐ,
चाहे कोई आ कर इसका नाम बताऐ,|
एक नाम हैं अब ये आया,
झूँठ में जिसका वबाल मंचाया,|
लेखक — जयविंद सिंह