प्रकृति और मानव
अब जगमगाते हैं शहर के नाटकी,
प्रकृति की गोद में लुटाते न थे ये प्राणी।
पेड़ों के संग खेला करते थे बचपन में,
अब टेक के बदले इमारतों की दीवानी।
नदियों का संगीत ध्वनि सुनते थे रोज़ाना,
अब जल में ही खो जाते हैं दरिया की कहानी।
प्रकृति से अन्याय किया हमने अनगिनत बार,
अब पछताएं हैं, प्रकृति की हर सुनी कहानी।
मानव को समझ आया अब धरती का महत्व,
प्रकृति के संग है सुख, शांति, और शक्ति।
आओ चलें प्रकृति के साथ, नए राह पर,
संगठित करें जोड़ी, मानव और प्रकृति की साथी।
बनाएं एक बेहतर धरती, खुशहाल और साफ,
प्रकृति के साथ रहें, संतुलन में, सुखी और खाली।