प्यार का दीपक जलाना चाहता हूं
ग़ज़ल-(बहर्-रमल मूसद्दस सालिम)
वज्न-2122 2122 2122
(अरकान-फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन)
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साजे़ दिल अपना सजाना चाहता हूं।
गीत कोई गुनगुनाना चाहता हूं।।
नफ़रतों की तीरगी गहरा गई है।
प्यार का दीपक जलाना चाहता हू।।
हो गईंअश्कों से अब ये चश्म -तर हैं।
आज खुल के मुस्कुराना चाहता हूं
इम्तिहां मुझसे लिए है हर क़दम पर।
मैं तुम्हें अब आज़माना चाहता हूं।।
ज़िंदगी सहरा सी अब लगने लगी है।
प्यार का दरिया बहाना चाहता हूं।।
झील से गहरी ये आंखे है इन्हीं में।
अब उतर कर डूब जाना चाहता हू।।
अब इबादत में नही दिल लग रहा।
रोते बच्चे को हंसाना चाहता हूं।।
रतजगा तन्हा करूं मैं क्यों “अनीश”अब।
नींद तेरी भी चुराना चाहता हूं।।