अब कोई भी इंसाफ़ की जंजीर नहीं है
ग़ज़ल
अब कोई भी इंसाफ़ की ज़ंजीर नहीं है।
ये दौर भी तो दौरे-जहाँगीर नहीं है।।
सच देखना है तुझको तो घर से भी निकल, देख।
टी वी जो दिखाता है वो तस्वीर नहीं है।।
कितने ही दुशासन है जो अस्मत को रहे लूट।
अब श्याम बढ़ाते किसी का चीर नहीं है
अब इसपे जिसे देखो वहीं हक़ है जताता।
ये दिल है हमारा कोई कश्मीर नहीं है।।
जख़्मों पे हमारे भी लगाता कोई मरहम।
अब ऐसी हमारी भी तो तकदीर नहीं है।।
इस मिट्टी में ही दफ़्न हैं अज्जाद सभी के।
ये मुल्क किसी एक की जागीर नहीं है।।
आँखों को हमारी भी “अनीस”अब न दिखाओ।
वो ख़्वाब कि जिनकी कोई ताबीर नहीं है।।
– अनीस शाह “अनीस”