अब कहां पहले जैसा बचपन
बचपन का भी क्या जमाना था
खुशियों का खजाना था
मिट्टी के खिलौने से खेलना
कागज के जहाजसे ही खुशी पाना था।
बाबा संग खेतों में जाकर
मूलीगाजर, टमाटर खाना था,
बनाती मां अम्मा पापड़ चिप्स मंगोडी
बीच बीच मे जाकर टांग अड़ाना था।
बाबा लाकर रखते सब्जी का थैला आंगन में,
निकाल उसी में से फल गपागप खाना था।
काटती मां पत्तागोभी जब
उठा उसे चबाने में मजा आना था।
नहीं थे जब चाऊमीन,मोमोज, पावभाजी
ताई के हाथोंंसे बने लड्डू में ही स्वाद आना था।
छोटी चाची के हाथों से सजना-संवरना
और फिर रानी बेटी ही कहलाना था।
जब ना थे स्मार्टफोन, महंगे-महंगे खेल
पिट्ठू, खो-खो, गुल्ली-डंडा खेलते सब भाई-बहन।
कोकोकोला, कोल्डड्रिंक से नहीं नाता
कैरी पन्ना,जीरा छाय और बील शरबत ही सुहाता था ।
बड़े हो गए थे जब भी, रोजाना
बाबा के साथ मंदिर भी जाना था,
आकर घर अम्मा के संग
भजन हरि कीर्तन गाना था।
बचपन भी क्या बचपन था
खुशियों का खजाना था।
अब कहां है वैसा बचपन,
भारी बस्ते में मर गया दबकर,
सिमट गया अब सब बच्चों का
स्मार्टफोन में घुस कर।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान