अब उठो पार्थ हुंकार करो,
अब उठो पार्थ हुंकार करो,
इन अधर्मियों का संघार करो ।
अब पांचाली के अपमान का,
उठ कर के प्रतिकार करो ।।
द्रोणाचार्य वही थे,भीष्म वही थे,
कुल बधू का चीर उतरता था,
तब कहां थी बोलो मर्यादा,
जब खल दुर्योधन हंसता था,
अब मोह छोड़ करके इनका,
तुम गांडीव की टंकार करो ।।
शकुनी के छल प्रपंचों का,
तुमको जवाब देना होगा,
लाक्षाग्रह की ज्वाला को,
तुमको मन में भरना होगा,
कर्म तुम्हारा युद्ध पार्थ है,
निज धर्म का जयकार करो।।
रण भूमि में यदि आकार तू,
यदि रण को छोड़ के जायेगा,
फिर सारे जग में कुंती नंदन,
तू कायर_कमजोर कहलाएगा,
क्षत्रिय वंश का अंश है तू,
रण का आवाह्न स्वीकार करो।।
फिर द्रोपदी भला कहां जायेगी,
न भीम प्रतिज्ञा पूर्ण हो पाएगी,
गुरु द्रोणाचार्य के शिष्यों को,
क्या लज्जा बिल्कुल न आएगी,
हे सर्वश्रेष्ठ! धनुर्धर अर्जुन,
तनिक न सोच विचार करो ।।
अपने मोह को त्यागो तुम,
हे कुन्ती नंदन जागो तुम,
सबको मैं पहले मार चुका हूं,
अब नाम मात्र का मारो तुम,
उठो और अब जयनाद करो,
ह्रदय में प्रज्वलित अंगार करो ।।
अनूप अम्बर, फर्रुखाबाद
अनूप अंबर, फर्रुखाबाद