अब आदमी के जाने कितने रंग हो गए।
गज़ल- 5
अब आदमी के जाने कितने रंग हो गए।
गिरगिट भी देख करके उनको दंग हो गए।1
दिल में छुपा के रखते हैं न जाने कितने राज,
दिल दिल नहीं रहे हैं अब सुरंग हो गए।2
शर्म-ओ-हया के नाम पर भी कुछ नहीं बचा,
चालो चलन में ऐसे उनके ढंग हो गए।3
अब स्वामी भक्ति का नहीं है कोई फ़लसफ़ा,
टुकड़ा जिधर दिखा उसी के संग हो गए।4
अब राजनीति में सभी का रॅंग उतर गया,
चेहरे सभी के देखिए बेरंग हो गए।5
‘प्रेमी’ वही जो डूबने से भी डरा नहीं,
दरिया में प्रेम के बहे तरंग हो गए।6
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी