अबोध मन..
अबोध मन..
आज फिर ज़िद पे अड़ा है,
जाने कैसी?
आज फिर से कैद,
मन की अंधेरी कोठरी में,
आंसू बहाना चाहता है…
जाने कैसा बोझ मन में?
जिसको भुलाना चाहता है,
अबोध मन…
आज फिर ये जाने क्यों?
संभाले नही संभलता है..
आज फिर से ये भटकना चाहता है,
अनजान गलियों में अंधेरी…
ढूंढता कोई अपना सा,,
ये विचरना चाहता है
खुद की धुन में हो मगन
खुद से ही खुद की बात कहता
दिल की गलियों से गुजरना चाहता है
अबोध मन..
जाने कैसी प्यास है?
किसकी इसे तलाश है?
हर गली हर मोड़ पर,
ये भटकना चाहता है।
खुद की खुद से नागवारी,
खुद की खुद से ये बेज़ारी.
हर ख्वाहिशे उम्मीद को,
ठोकर से उड़ाना चाहता है..
अबोध मन